google.com, pub-3362878436031425, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Mobile Phone Tower ( Mobile Phone Radiation) हमारे लिए कितना नुकशान, मोबाइल फ़ोन के Side-Effects hindi में

Mobile Phone Tower ( Mobile Phone Radiation) हमारे लिए कितना नुकशान, मोबाइल फ़ोन के Side-Effects hindi में


Hello friends, आपलोगों का इस वेबसाइट पर स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे कि मोबाइल फ़ोन कितना useful है। और कितना दुष्प्रभाव है। मोबाइल फोन आज हमारे लिए एक जरूरत बन गया है। बाजार में आती जा रही नई नई तकनीकों से लैस होने के कारण मोबाइल को हमारी दिनचर्या का एक अहम् हिस्सा बना दिया है। हालाँकि जब हम मोबाइल फोन की बात करते हैं, तो जरुरी है कि इसके रेडिएशन के बारे में भी  चर्चा करें। आपको बता दें कि जब मोबाइल फोन हमारी जिंदगी में आये भी नहीं थे उस समय एक बड़ी बहस यह खड़ी हो गई थी कि आखिर क्या यह हमारे लिए सुरक्षित होगा या नहीं ! हम सभी जानते हैं मोबाइल फ़ोन आज हमारे लिए कितना useful हो गया है।, हमारे करीबियों से कहीं भी जोड़े रखने के लिए हमें इसकी जरूरत हमेशा होने लगी है। लेकिन क्या मोबाइल फोन का इस्तेमाल हमारे लिए सुरक्षित है? यह एक बड़ा सवाल है। और इसका जवाब हमलोग इस लेख में जानेगे। तो चलिए जानते हैं कि मोबाइल use करने के sideeffects क्या क्या हैं ?.... थोड़ा रुकिए ,,, इससे पहले कि हम इस बारे में चर्चा करना शुरू करें, आइये जान लेते हैं कि आखिर Mobile Radiation होता क्या है?






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Mobile Phone Radiation







            मोबाइल रेडिएशन पर कई रिसर्च पेपर तैयार कर चुके आईआईटी बॉम्बे ( ITI Bombay) में इलेक्ट्रिकल इंजिनियर प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि मोबाइल रेडिएशन से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन में गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द आदि।







Mobile Radiation :-



मोबाइल फोन रेडिएशन को गैर-आयनीकरण के रूप में वर्गीकृत किया गया है। गैर- आयनीकरण रेडिएशन विभिन्न प्रकार के विद्युत चुम्बकीय रेडिएशन को दर्शाता है। अगर इसे आसान शब्दों में कहें, इसका अर्थ है कि गैर- आयनीकरण रेडिएशन द्वारा ऊर्जा को किसी अन्य रूप में छोड़ा जाता है। यह अणुओं को आयनित नहीं करता है जो अधिक हानिकारक रेडिएशन प्रभाव पैदा कर सकता है।



गैर- आयनीकरण रेडिएशन के अन्य रूपों में माइक्रोवेव, रेडियो तरंगें और दृश्यमान प्रकाश (लाइट्स) शामिल हैं।







मोबाइल रेडिएशन आपके दिमाग पर क्या प्रभाव डालता है ?



WHO (world health organization) का कहना है कि माइक्रोवेव भी मोबाइल फोन के जैसे ही रेडिएशन को छोड़ते हैं। एक माइक्रोवेव को इस्तेमाल करते हुए आप जिस चीज़ को गर्म करना चाहते हैं, उसे उसके ऊपर रखते हैं। ऐसा ही कुछ मोबाइल फोन के साथ भी होता है। यानी आप इस समय गैर- आयनीकरण रेडिएशन से प्रभावित हो रहे होते हैं।

           आपको बता दें कई शोधों में ऐसा भी सामने आ चुका है कि अगर आप 50 मिनट तक निरंतर एक मोबाइल फोन को इस्तेमाल करते हैं तो यह आपके दिमाग के सेल्स को प्रभावित कर सकता है। और अगर आप ऐसा निरन्तर करते रहते हैं तो आपके दिमाग को भारी नुकसान हो सकता है।



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मोबाइल फ़ोन रेडिएशन को लेकर WHO (World Health Organization) क्या कहता है? 



हाँलांकि WHO ने पहले कहा था कि मोबाइल फ़ोन से होने वाले रेडिएशन से आपको किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है। हालाँकि बाद में जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो मोबाइल फोन को लेकर WHO की धारणा या इस बिंदु को बदलने के लिए 31 वैज्ञानिकों को दुनिया भर से इकट्ठा किया। इस शोध में लगभग 14 देश शामिल हुए थे।

इसके बाद सामने आया कि जैसे एक घर में माइक्रोवेव से बड़े नुक्सान हो सकते हैं, वैसे ही एक मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन से मनुष्य को कैंसर भी हो सकता है। अब तक, वैज्ञानिकों ने केवल दो प्रकार के कैंसर का निर्धारण किया है जो इन परिणामों से सीधे संबंधित होते हैं। और यह दो प्रकार के कैंसर :





1. Glioma और





2. Acoustic Neuromas।








दुनिया मोबाइल फोन रेडिएशन को लेकर क्या कहती है ?



इसका मतलब है कि मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल आपके दिमागी सेल्स को तो प्रभावित करता ही है साथ ही आपको कैंसर से भी पीड़ित कर सकता है। अगर हम दुनियाभर के देशों की चर्चा करें तो इसे लेकर सभी देशों में कुछ न कुछ डिबेट तो चलती ही रहती है। विश्वभर में मोबाइल रेडिएशन को लेकर सभी चिंता में है. लेकिन क्या यह बात जानकारी की मोबाइल फोंस से आपके दिमाग के सेल्स नष्ट होते हैं, साथ ही आप कैंसर से भी पीड़ित हो सकते हैं। तो क्या माऐसे में मोबाइल Phones का इस्तेमाल करना बन्द कर देंगे ?

         आज यह भी एक बड़ा सवाल है और इसका जवाब आजकल की पीढ़ी के पास तो मेरे खयाल में नहीं है। क्योंकि आज हम विश्व की चर्चा करें या भारत जैसे विकासशील देश की चर्चा करें तो आपको बता दें कि सभी जगह युवा आज अपने मोबाइल फोन को ही सब मान बैठे हैं, जहां ऐसा माना जाता है कि अपने शरीर से कुछ दूरी पर मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना चाहिए, वहां आज हमारे युवा इसे अपने शरीर से लगा के रखते हैं।



क्या इनके लिए मोबाइल की इस लत को छुड़ा पाना आसान होगा?



        यह तो एक बड़ी बहस का मुद्दा है। हालाँकि अगर आज के तकनीकी भरे युग की चर्चा करें तो इसमें तो कोई भी अपने मोबाइल फोन से पीछा छुड़ाना नहीं चाहेगा , क्योंकि एक मोबाइल फोन के माध्यम से ही वह दुनिया से जुड़ा हुआ है, जैसे ही उसने इसका साथ छोड़ा वह दुनिया से अलग हो जाएगा। अब जब हम अपने फोन को इस्तेमाल करना बंद नहीं कर सकते हैं, और हम जानते हैं कि आखिर इससे हमें क्या दिक्कतें और परेशानी हो सकती है। तो हम कुछ उपाय कर सकते हैं, जिनसे इसके रेडिएशन से काफी हद तक हमारा बचाव हो सकता है।





मोबाइल रेडिएशन से बचाव :



जहां हम इस बारे में चर्चा कर चुके हैं कि अगर आप अपने मोबाइल फोन को इस्तेमाल करना बंद नहीं कर सकते हैं, वहां आप कुछ आसान से उपायों को अपनाकर इसके माध्यम से होने वाले रेडिएशन को काफी हद तक कम कर सकते हैं। आइये जानते हैं उन आसान से उपायों के बारे में को आपको कहीं न कहीं काफी हद तक मोबाइल रेडिएशन से बचा सकते हैं।





◆  प्रोटेक्टिव केस का इस्तेमाल: अगर आप अभी तक अपने फोन के किसी प्रोटेक्टिव केस के बिना ही इस्तेमाल कर रहे हैं तो आपको एक केस अब ले लेना चाहिए। आपको बाजार में बहुत से ऐसे केस मिल जायेंगे जो मोबाइल फोन से होने वाले डायरेक्ट प्रभाव को काफी हद तक कम कर देते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप अपने आपको और अपने स्वास्थ्य को कुछ हद तक सही रख सकते हैं।



◆  अपने शरीर से मोबाइल फोन को दूर रखें: इस बात को आपको सभी प्रकार से गाँठ बाँध लेना है कि आपको फोन को जितना हो सके अपने शरीर से दूर रखना। अपने फोन को दिल के करीब वाली जेब में कभी न रखें, इसके अलावा अगर आप इसे अपनी पेंट की जेब में रखते हैं, तो यह भी आपके लिए सही नहीं है। ऐसा करने से आप मोबाइल फोन से होने वाले रेडिएशन से ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।



◆  घर या ऑफिस में ज्यादातर लैंडलाइन का इस्तेमाल करें: अगर आप घर में या ऑफिस में हैं तो अपने मोबाइल फोन के स्थान पर लैंडलाइन का इस्तेमाल करें, इससे आप इसकी हानिकारक किरणों की चपेट में आने से बच सकते हैं।



◆  ऑफ करके रखें अपना फोन: अगर हो सके और जिस समय आप अपने मोबाइल फोन को इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो इसे स्विच ऑफ करके रखे। खासकर रात में जब आप मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो उस समय आप इसे बंद करके भी सो सकते हैं।



◆  स्पीकर फोन पर करें बात: अगर आप मोबाइल फोन की डायरेक्ट किरणों से अपने आप को बचाना चाहते हैं तो आपको बता दें कि आप इसके माध्यम से स्पीकर फोन पर बातें कर सकते हैं। हालाँकि आपको ऐसा लग सकता है कि कोई दूसरा भी आपकी बातों को सुन रहा है, लेकिन आपका फोन आपके शरीर से तो दूर रहेगा।





मोबाइल radiation से और क्या खतरा हो सकता है ?



स्टडी कहती है कि मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। दरअसल, हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। यहां तक कि बीते साल आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन ट्यूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।







रेडिएशन कितनी तरह का होता है :-



माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं। लेकिन लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल रेडिएशन दो तरह से होता है, मोबाइल टावर और मोबाइल फोन से।






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रेडिएशन से किसे ज्यादा नुकसान :-



 मैक्स हेल्थकेयर में कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स ऐडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि बच्चों और किशोरों को मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए और स्पीकर फोन या हैंडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सिर और मोबाइल के बीच दूरी बनी रहे। बच्चों और और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा यूज से बचना चाहिए।







 किससे नुकसान ज्यादा , मोबाइल टावर या फोन ?





प्रो. गिरीश कुमार के मुताबिक मोबाइल फोन हमारे ज्यादा करीब होता है, इसलिए उससे नुकसान ज्यादा होना चाहिए लेकिन ज्यादा परेशानी टावर से होती है क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, जबकि टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिलते हैं, जबकि टावर के पास रहनेवाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहनेवाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं। मुंबई की उषा किरण बिल्डिंग में कैंसर के कई मामले सामने आने को मोबाइल टावर रेडिएशन से जोड़कर देखा जा रहा है। फिल्म ऐक्ट्रेस जूही चावला ने सिरदर्द और सेहत से जुड़ी दूसरी समस्याएं होने पर अपने घर के आसपास से 9 मोबाइल टावरों को हटवाया।





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मोबाइल टावर के किस एरिया में नुकसान सबसे ज्यादा?





मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। ऐंटेना के सामनेवाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगें निकलती हैं। जाहिर है, सामने की ओर ही नुकसान भी ज्यादा होता है, पीछे और नीचे के मुकाबले। मोबाइल टावर से होनेवाले नुकसान में यह बात भी अहमियत रखती है कि घर टावर पर लगे ऐंटेना के सामने है या पीछे। इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है। टावर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है। टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा।







कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल करना ठीक होगा ?





दिन भर में 24 मिनट तक मोबाइल फोन का इस्तेमाल सेहत के लिहाज से मुफीद है। यहां यह भी अहम है कि आपके मोबाइल की SAR वैल्यू क्या है? ज्यादा SAR वैल्यू के फोन पर कम देर बात करना कम SAR वैल्यू वाले फोन पर ज्यादा बात करने से ज्यादा नुकसानदेह है। लंबे वक्त तक बातचीत के लिए लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल रेडिएशन से बचने का आसान तरीका है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि ऑफिस या घर में लैंडलाइन फोन का इस्तेमाल करें। कॉर्डलेस फोन के इस्तेमाल से बचें।







आंकड़ों (data) के अनुसार,,





2010 में WHO की एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि मोबाइल रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा है।

हंगरी में साइंटिस्टों ने पाया कि जो युवक बहुत ज्यादा सेल फोन का इस्तेमाल करते थे, उनके स्पर्म की संख्या कम हो गई।

जर्मनी में हुई रिसर्च के मुताबिक जो लोग ट्रांसमिटर ऐंटेना के 400 मीटर के एरिया में रह रहे थे, उनमें कैंसर होने की आशंका तीन गुना बढ़ गई। 400 मीटर के एरिया में ट्रांसमिशन बाकी एरिया से 100 गुना ज्यादा होता है।

केरल में की गई एक रिसर्च के अनुसार सेल फोन टॉवरों से होनेवाले रेडिएशन से मधुमक्खियों की कमर्शल पॉप्युलेशन 60 फीसदी तक गिर गई है।

सेल फोन टावरों के पास जिन गौरेयों ने अंडे दिए, 30 दिन के बाद भी उनमें से बच्चे नहीं निकले, जबकि आमतौर पर इस काम में 10-14 दिन लगते हैं। गौरतलब है कि टावर्स से काफी हल्की फ्रीक्वेंसी (900 से 1800 मेगाहर्ट्ज) की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज निकलती हैं, लेकिन ये भी छोटे चूजों को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।

2010 की इंटरफोन स्टडी इस बात की ओर इशारा करती है कि लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से ट्यूमर होने की आशंका बढ़ जाती है।





रेडिएशन को लेकर क्या हैं गाइडलाइंस -





जीएसएम(GSM) टावरों के लिए रेडिएशन लिमिट 4500 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर तय की गई। लेकिन इंटरनैशनल कमिशन ऑन नॉन आयोनाइजिंग रेडिएशन (ICNIRP) की गाइडलाइंस जो इंडिया में लागू की गईं, वे दरअसल शॉर्ट-टर्म एक्सपोजर के लिए थीं, जबकि मोबाइल टॉवर से तो लगातार रेडिएशन होता है। इसलिए इस लिमिट को कम कर 450 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर करने की बात हो रही है। ये नई गाइडलाइंस 15 सितंबर से लागू होंगी। हालांकि प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि यह लिमिट भी बहुत ज्यादा है और सिर्फ 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर रेडिशन भी नुकसान देता है। यही वजह है कि ऑस्ट्रिया में 1 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर और साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया में 0.01 मिलीवॉट/मी. स्क्वेयर लिमिट है।







दिल्ली में मोबाइल रेडिएशन किस लेवल पर है-



2010 में एक मैगज़ीन और कंपनी के सर्वे में दिल्ली में 100 जगहों पर टेस्टिंग की गई और पाया कि दिल्ली का एक-चौथाई हिस्सा ही रेडिएशन से सुरक्षित है लेकिन इन जगहों में दिल्ली के वीवीआईपी एरिया ही ज्यादा हैं। रेडिएशन के लिहाज से दिल्ली का कनॉट प्लेस, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, खान मार्केट, कश्मीरी गेट, वसंत कुंज, कड़कड़डूमा, हौज खास, ग्रेटर कैलाश मार्केट, सफदरजंग अस्पताल, संचार भवन, जंगपुरा, झंडेवालान, दिल्ली हाई कोर्ट को डेंजर एरिया में माना गया। दिल्ली के नामी अस्पताल भी इस रेडिएशन की चपेट में हैं।







किस तरह कम कर सकते हैं मोबाइल फोन रेडिएशन-



◆ रेडिएशन कम करने के लिए अपने फोन के साथ फेराइट बीड (रेडिएशन सोखने वाला एक यंत्र) भी लगा सकते हैं।



◆ मोबाइल फोन रेडिएशन शील्ड का इस्तेमाल भी अच्छा तरीका है। आजकल कई कंपनियां मार्केट में इस तरह के उपकरण बेच रही हैं।



◆ रेडिएशन ब्लॉक ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, ये खास तरह के सॉफ्टवेयर होते हैं, जो एक खास वक्त तक वाईफाई, ब्लू-टूथ, जीपीएस या ऐंटेना को ब्लॉक कर सकते हैं।





टावर के रेडिएशन से कैसे बच सकते हैं?



मोबाइल रेडिएशन से बचने के लिए ये उपाय कारगर हो सकते हैं:



मोबाइल टॉवरों से जितना मुमकिन है, दूर रहें।

टावर कंपनी से ऐंटेना की पावर कम करने को बोलें।

अगर घर के बिल्कुल सामने मोबाइल टावर है तो घर की खिड़की-दरवाजे बंद करके रखें।

घर में रेडिएशन डिटेक्टर की मदद से रेडिएशन का लेवल चेक करें। जिस इलाके में रेडिएशन ज्यादा है, वहां कम वक्त बिताएं।

Detex नाम का रेडिएशन डिटेक्टर करीब 5000 रुपये में मिलता है।

घर की खिड़कियों पर खास तरह की फिल्म लगा सकते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा रेडिएशन ग्लास के जरिए आता है। ऐंटि-रेडिएशन फिल्म की कीमत एक खिड़की के लिए करीब 4000 रुपए पड़ती है।

खिड़की दरवाजों पर शिल्डिंग पर्दे लगा सकते हैं। ये पर्दे काफी हद तक रेडिएशन को रोक सकते हैं। कई कंपनियां ऐसे प्रॉडक्ट बनाती हैं।



क्या मोबाइल में कम सिग्नल भी हो सकते हैं घातक?



अगर सिग्नल कम आ रहे हों तो मोबाइल का इस्तेमाल न करें क्योंकि इस दौरान रेडिएशन ज्यादा होता है। पूरे सिग्नल आने पर ही मोबाइल यूज करना चाहिए। मोबाइल का इस्तेमाल खिड़की या दरवाजे के पास खड़े होकर या खुले में करना बेहतर है क्योंकि इससे तरंगों को बाहर निकलने का रास्ता मिल जाता है।











आखिर स्पीकर पर बात करना कितना मददगार?



मोबाइल शरीर से जितना दूर रहेगा, उनका नुकसान कम होगा, इसलिए फोन को शरीर से दूर रखें। ब्लैकबेरी फोन में एक मेसेज भी आता है, जो कहता है कि मोबाइल को शरीर से 25 मिमी (करीब 1 इंच) की दूरी पर रखें। सैमसंग गैलेक्सी एस 3 में भी मोबाइल को शरीर से दूर रखने का मेसेज आता है। रॉकलैंड हॉस्पिटल में ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. धीरेंद्र सिंह के मुताबिक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से बचने के लिए स्पीकर फोन या या हैंड्स-फ्री का इस्तेमाल करें। ऐसे हेड-सेट्स यूज करें, जिनमें ईयर पीस और कानों के बीच प्लास्टिक की एयर ट्यूब हो।



क्या मोबाइल अपने पास में रखकर सोना सही है ?



मोबाइल को हर वक्त जेब में रखकर न घूमें, न ही तकिए के नीचे या बगल में रखकर सोएं क्योंकि मोबाइल हर मिनट टावर को सिग्नल भेजता है। बेहतर है कि मोबाइल को जेब से निकालकर कम-से-कम दो फुट यानी करीब एक हाथ की दूरी पर रखें। सोते हुए भी दूरी बनाए रखें।



जेब में मोबाइल रखना दिल के लिए कितना नुकसानदेह है?



एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट में कार्डिएक साइंसेज के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ के मुताबिक अभी तक मोबाइल रेडिएशन और दिल की बीमारी के बीच सीधे तौर पर कोई ठोस संबंध सामने नहीं आया है। लेकिन मोबाइल के बहुत ज्यादा इस्तेमाल या मोबाइल टावर के पास रहने से दूसरी समस्याओं के साथ-साथ दिल की धड़कन का अनियमित होने की आशंका जरूर होती है। और यही कारण है कि आये दिन लोगों में हृदयाघात (heart-attack, हार्ट अटैक) की संख्या निरंतर बढ़ते जा रही है। बेहतर यही है कि हम सावधानी बरतें और मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।



मोबाइल पेसमेकर लगाना कितना सुरक्षित ?



डॉ. सेठ का कहना है कि अगर शरीर में पेसमेकर लगा है तो हैंडसेट से 1 फुट तक की दूरी बनाकर बात करें। शरीर में लगा डिवाइस इलेक्ट्रिक सिग्नल पैदा करता है, जिसके साथ मोबाइल के सिग्नल दखल दे सकते हैं। ऐसे में ये शरीर को कम या ज्यादा सिग्नल पहुंचा सकते हैं, जो नुकसानदेह हो सकता है। ऐसे में ब्लूटूथ या हैंड्स-फ्री डिवाइस के जरिए या फिर स्पीकर ऑन कर बात करें। पेसमेकर जिस तरफ लगा है, उस पॉकेट में मोबाइल न रखें।







नोट :

( पेसमेकर : wikipedia के अनुसार : "दिल की धड़कन को नियंत्रित रखने के लिए पेसमेकर (या कृत्रिम पेसमेकर, ताकि दिल का प्राकृतिक पेसमेकर मानकर भ्रमित न हुआ जाय) एक चिकित्सा उपकरण है, जो दिल की मांसपेशियों से संपर्क करने के लिए इलेक्ट्रोड द्वारा प्रदत्त विद्युत आवेगों का उपयोग करता है।" )







पेंट की जेब में रखने से क्या स्पर्म्स पर असर होता है?



जाने-माने सेक्सॉलजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी का मानना है कि मोबाइल रेडिएशन से नुकसान होता है या नहीं, इसका कोई ठोस सबूत नहीं हैं। फिर भी एहतियात के तौर पर आप अपने मोबाइल को कमर पर बेल्ट के साथ लगाएं तो बेहतर होगा।



क्या ब्लूटूथ का इस्तेमाल भी हो सकता है खतरनाक ?



अगर हम ब्लूटूथ का इस्तेमाल करते हैं, तो हमारे शरीर में रेडिएशन थोड़ा ज्यादा अब्जॉर्ब होगा। अगर ब्लूटूथ ऑन करेंगे तो 10 मिली वॉट पावर अडिशनल निकलेगी। मोबाइल से निकलने वाली पावर के साथ-साथ शरीर इसे भी अब्जॉर्ब करेगा। ऐसे में जरूरी है कि ब्लूटूथ पर बात करते हैं तो मोबाइल को अपने शरीर से दूर रखें। एक फुट की दूरी हो तो अच्छा है।



क्या गेम्स /नेट सर्फिंग के दौरान मोबाइल यूज करना खतरनाक हो सकता है ?



मोबाइल पर गेम्स खेलना सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह नहीं है, लेकिन इंटरनेट सर्फिंग के दौरान रेडिएशन होता है इसलिए मोबाइल फोन से ज्यादा देर इंटरनेट सर्फिंग नहीं करनी चाहिए।





SAR Value की मोबाइल रेडिएशन में क्या भूमिका है ?



कम एसएआर (SAR) संख्या वाला मोबाइल खरीदें, क्योंकि इसमें रेडिएशन का खतरा कम होता है। मोबाइल फोन कंपनी की वेबसाइट या फोन के यूजर मैनुअल में यह संख्या छपी होती है। वैसे, कुछ भारतीय कंपनियां ऐसी भी हैं, जो एसएआर संख्या का खुलासा नहीं करतीं।





क्या है SAR : अमेरिका के नैशनल स्टैंडर्ड्स इंस्टिट्यूट (NSI) के मुताबिक, एक तय वक्त के भीतर किसी इंसान या जानवर के शरीर में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की माप को SAR (Specific Absorption Rate) कहा जाता है। SAR संख्या वह ऊर्जा है, जो मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त इंसान का शरीर सोखता है। मतलब यह है कि जिस मोबाइल की SAR संख्या जितनी ज्यादा होगी, वह शरीर के लिए उतना ही ज्यादा नुकसानदेह होगा।







 कैसे चेक करें अपने मोबाइल फोन का SAR (Specific Absorption Rate)  Value :



अपने मोबाइल फ़ोन में SAR Value चेक करने के लिए अपने फ़ोन में एक कोड डालना होगा,और आप आसानी से चेक कर सकते हैं, अपने मोबाइल फ़ोन में *#07# डायल करे और अपनी मोबाइल फ़ोन का SAR Value चेक करें.





भारत में SAR के लिए क्या हैं नियम?





अभी तक हैंडसेट्स में रेडिएशन के यूरोपीय मानकों का पालन होता है। इन मानकों के मुताबिक हैंडसेट का एसएआर लेवल 2 वॉट प्रति किलो से ज्यादा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। लेकिन एक्सपर्ट इस मानक को सही नहीं मानते हैं। इसके पीछे दलील यह दी जाती है कि ये मानक भारत जैसे गर्म मुल्क के लिए मुफीद नहीं हो सकते। इसके अलावा, भारतीयों में यूरोपीय लोगों के मुकाबले कम बॉडी फैट होता है। इस वजह से हम पर रेडियो फ्रीक्वेंसी का ज्यादा घातक असर पड़ता है। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित गाइडलाइंस में यह सीमा 1.6 वॉट प्रति किग्रा कर दी गई है, जोकि अमेरिकी स्टैंडर्ड है।





मेट्रो या लिफ्ट में मोबाइल यूज करते वक्त क्या ध्यान रखें?







लिफ्ट या मेट्रो में मोबाइल के इस्तेमाल से बचें क्योंकि तरंगों के बाहर निकलने का रास्ता बंद होने से इनके शरीर में प्रवेश का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, इन जगहों पर सिग्नल कम होना भी नुकसानदेह हो सकता है।





मोबाइल को कहां रखें ताकि radiation से दूर रहें।



मोबाइल को कहां रखा जाए, इस बारे में अभी तक कोई आम राय नहीं बनी है। यह भी साबित नहीं हुआ है कि मोबाइल को पॉकेट आदि में रखने से सीधा नुकसान है, पेसमेकर के मामले को छोड़कर। फिर भी एहतियात के तौर पर महिलाओं के लिए मोबाइल को पर्स में रखना और पुरुषों के लिए कमर पर बेल्ट पर साइड में लगाए गए पाउच में रखना सही है।



     तो दोस्तों, उम्मीद करता हूँ Mobile Phone Use Karne Ke sideeffects hindi me पोस्ट आपको पसंद आई होगी। यह पोस्ट आपको कैसी लगी आप हमें कॉमेंट् करके बता सकते हैैं। और अपने friends तथा relatives को ज़रूर share करें। 

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