google.com, pub-3362878436031425, DIRECT, f08c47fec0942fa0 जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? रथ से जुड़ी जानें ये बड़ी बातें

जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? रथ से जुड़ी जानें ये बड़ी बातें

Jagannath Yatra : जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई? रथ से जुड़ी जानें ये बड़ी बातें Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा में विशालकाय रथों का एक अपना महत्व है, कैसे हुई थी जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत ? क्या है तीन रथों की विशेषता आइए जानते हैं इन्हीं सवालों के जवाब.

Jagannath mandir pooja
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 Jagannath Rath Yatra 2023: पुरी की जगन्नाथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से रथ यात्रा निकलती है इस दौरान भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर जनता का हाल जानने निकलते हैं. मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा के दर्शन मात्र से व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं. रथ यात्रा में विशालकाय रथों का एक अपना महत्व है. इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून 2023 को शुरू होगी. कैसे हुई थी जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत ? क्या है तीन रथों की विशेषता आइए जानते हैं इन्हीं सवालों के जवाब. जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 मुहूर्त जगन्नाथ जी की रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 20 जून 2023 को रात्रि 10.04 मिनट पर शुरू होगी और यात्रा का समापन 21 जून 2023 को शाम 07.09 मिनट पर होगा. नगर भ्रमण के बाद इस दिन भगवान जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा देवी गुड़िचा मंदिर में अपनी मौसी के घर विश्राम करेंगे. कैसे हुई जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत ? जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, एक कथा के अनुसार एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण और बलराम से द्वारिका दर्शन की इच्छा जाहिर की, जिसे पूरी करने के लिए तीनों रथ पर सवार होकर द्वारका नगर भ्रमण पर निकले तभी से रथयात्रा हर साल होती है. ये है जगन्नाथ रथ का खासियत भगवान जग्गनाथ, बलभद्र व सुभद्रा देवी के रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाये जाते है. इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है. सभी रथ इसमें इतनी हल्की लकड़ियां होती है कि रथ को आसानी से खींचा जा सकता है.. श्रीकृष्ण के रथ की विशेषता 832 लकड़ी के टुकड़ों से बना जगन्नाथ जी का रथ 16 पहियों का होता है, जिसकी ऊंचाई 13 मीटर तक होती है. इसका रंग लाल और पीला होता है. गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष ये भगवान जग्गनाथ के रथ के नाम हैं. रथ की ध्वजा यानी झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है. रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है.भगवान जगन्नाथ रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं. सुभद्रा देवी का रथ सुभद्राजी के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक होता है. देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है. लाल और काले रंग का ये रथ 12.9 मीटर ऊंचा होता है. रथ के रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं. इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं. बलरामजी का रथ भगवान बलभद्र को महादेवजी का प्रतीक माना गया है. रथ का नाम तालध्वज है. रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं.13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों का ये रथ लाल, हरे रंग का होता है


Interesting facts about Puri Jagannath Rath Yatra
Jagannath Rath Yatra: जानिए भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़े रोचक तथ्य

Jagannath rath yatra kya hita hai rochak tathya
Jagannath rath yatra 



ओड़िशा के पुरी में हर साल आयोजित होने वाले जगन्नाथ रथ यात्रा से जु़ड़े कई रोचक चथ्य मौजूद हैं जो हैरान करने वाले हैं। जानिए इनके बारे में-jagannath rath yatraजगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े रोचक तथ्यमुख्य बातें –

  • हर साल ओड़िशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है.भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़े कई रोचक तथ्य हैं जो हैरान करते हैंहर साल निकलने वाले रथ को नए सिरे से तैयार किया जाता है!

  • ओड़िशा के पुरी में हर साल आयोजित होने वाले जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास बेहद पुराना है। यह भारत में हिंदुओं का एक बड़ा फेस्टिवल है। इसमें भगवान जगन्नाथ की रथ पर सवारी निकाली जाती है इस यात्रा का बड़ा धार्मिक महत्व माना जाता है।
  • भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का धार्मिक के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है। पुरी में आयोजित होने वाले इस रथ यात्रा पर पूरे देश की नजर रहती है। इस यात्रा में श्रद्धालुओं का भारी भीड़ जुटती है। आज हम आपको इस रथ यात्रा के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं- 

  • पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में पूजा के दौरान इसके गेट पर हिंदू धर्म के लोगों के अलावा अन्य किसी भी धर्म के लोगों को प्रवेश की इजाजत नहीं मिलती है। हालांकि इसके रथ यात्रा के दौरान किसी के भी इस यात्रा में शामिल होने की अनुमति है। फेस्टिवल के दौरान हर कोई भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकता है और उनके आशीर्वाद ले सकता है।

  • यात्रा में तीन रथ की पालकी चलती है जिसमें क्रमश: तीन भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को रथ पर बिठाया जाता है। इसलिए इस फेस्टिवल को रथ त्योहार भी कहा जाता है। इन रथों को नंदीघोष, तलाध्वजा और देवादालना भी कहा जाता है। 

  • नंदीघोष भगवान जगन्नाथ का रथ होता है जिसमें 18 पहिए होते हैं। तलाध्वजा भगवान बलराम का रथ होता है जिसमें 16 पहिए होते हैं जबकि सुभद्रा के रथ में 14 पहिए होते हैं। 

  • सबसे रोचक बात ये है कि हर साल ये तीनों रथों को नया बनाया जाता है। हर साल इस रथ के निर्माण में लगने वाले सभी सामान भी नए होते हैं। इसके डिजाइन, आकार, साइज शेप सभी पहले जैसे ही होते हैं इनमें कोई बदलाव नहीं होता है। हर रथ के आगे 4 घोड़े बांधे जाते हैं।

  • रथ के ऊपर में मंदिर के टावर के स्ट्रक्चर की रेप्लिका होती है जो नॉर्थ इंडियन स्टाइल में होती है। सैकड़ों श्रद्धालु और भक्त रस्सियों के सहारे रथ को खींचते हैं इसमें वे भगवान का आशीर्वाद मानते हैं। इसके लिए 1200 मीटर के कपड़े का उपयोग किया जाता है। 15 कुशल दर्जी के द्वारा इसे सिलवाया जाता है।

  • पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक पुरी के राजा झाड़ू से यहां की जमीन को रथ यात्रा से पहले बुहारते हैं जिसके बाद बड़े ही ठाट-बाट से भगवान की रथ यात्रा निकाली जाती है।

  • जब यह फेस्टिवल शुरू होता है तब भगवान जगन्नाथ का रथ इतना भारी होता है कि यह हिलाए नहीं हिलता है काफी देर तक सैकड़ों लोग मिकर इनके रथ को हिलाते हैं तब जाकर ये यात्रा शुरू होती है।

  • इस रथ यात्रा के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहते हैं कि हर साल भगवान जगन्नाथ को रथ यात्रा के पहले ही काफी तेज बुखार आ जाता है। इसलिए उन्हें ऐसे में 1 सप्ताह का आराम दिया जाता है। इस दौरान मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और किसी को भी भगवान को डिस्टर्ब करने की इजाजत नहीं होती है।  

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